भारतीय समाज में अक्सर लोग संपत्ति अपने परिवार की बुरी परिस्थितियों या बचत को सुरक्षित रखने के लिए पत्नी के नाम पर रजिस्टर कराते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि संपत्ति किसके नाम पर रजिस्ट्री हो, इससे जुड़े कानून और कोर्ट के नए फैसलों को सही तरह से समझा जाए। बीते वर्षों में इन कानूनों में काफी बदलाव हुए हैं, जिससे महिलाओं के अधिकारों, संपत्ति के मालिकाना हक और पारिवारिक अधिकारों को लेकर नई स्पष्टता आई है।
सरकार ने महिलाओं के नाम पर संपत्ति खरीदने को आसान और आर्थिक रूप से लाभकारी बनाने के लिए कई योजनाएं और छूट भी प्रदान की हैं। इसमें स्टांप ड्यूटी (Stamp Duty) में छूट और कुछ राज्यों में रजिस्ट्री फीस में भी कमी दी जाती है। इस वजह से भी कई लोग संपत्ति पत्नी के नाम कराने को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन काफी लोग इस प्रक्रिया की कानूनी पेचीदगियों को नहीं जानते, जिससे कभी-कभी पारिवारिक विवाद या कानूनी उलझनें खड़ी हो सकती हैं।
पत्नी के नाम पर संपत्ति रजिस्टर करने के बारे में नया कानून
2025 के अदालत और कोर्ट के हालिया फैसलों ने साफ किया है कि अगर पति अपनी मेहनत और आमदनी से संपत्ति खरीदकर पत्नी के नाम रजिस्ट्री कराता है, तो यह जरूरी नहीं कि वह सिर्फ पत्नी की व्यक्तिगत संपत्ति हो जाएगी। अगर पत्नी के पास अपनी स्वतंत्र आय का कोई स्रोत नहीं है, तो ऐसी संपत्ति को कोर्ट ने “पारिवारिक संपत्ति” या संयुक्त परिवार की संपत्ति माना है। इसका अर्थ है कि पत्नी के साथ परिवार के अन्य सदस्य, जैसे बच्चे भी, भविष्य में उस संपत्ति पर अधिकार जता सकते हैं, क्योंकि वह संपत्ति परिवार की सामूहिक कमाई मानी जाती है, न कि केवल पत्नी की।
हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार, अगर पत्नी के नाम पर रजिस्ट्री की गई संपत्ति उसकी स्वयं की कमाई से खरीदी जाती है (जैसे नौकरी, व्यवसाय या किसी और स्रोत से), तो वह उनकी व्यक्तिगत और स्वतंत्र संपत्ति मानी जाएगी। ऐसी स्थिति में पत्नी उस संपत्ति को कभी भी बेच, ट्रांसफर या दान कर सकती है – इसके लिए उसे पति या परिवार की अनुमति की जरूरत नहीं होगी।
कौन-कौन सी योजना और छूटें सरकार की ओर से मिलती हैं
सरकार का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना और संपत्ति के क्षेत्र में उन्हें आगे लाना है। इस दिशा में सबसे बड़ा लाभ स्टांप ड्यूटी में छूट है। अधिकांश राज्यों में महिलाओं के नाम पर प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन कराने पर स्टांप ड्यूटी 1% से 2% तक कम लगती है, जिससे लाखों रुपए की बचत होती है। यह छूट केवल तभी मिलती है जब संपत्ति की रजिस्ट्री सीधे महिला के नाम हो रही हो।
इसके अलावा, कुछ राज्यों में रजिस्ट्रेशन फीस में छूट, महिलाओं के लिए होम लोन पर विशेष दरें, और संपत्ति खरीदने के लिए बैंक की आसान किस्तें या योजनाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं। इन योजनाओं का लाभ लेने के लिए सभी कानूनी दस्तावेज और प्रमाण साफ-साफ होने बहुत जरूरी हैं, ताकि बाद में कोई विवाद या जाँच न हो।
संपत्ति का स्वामित्व किसके पास रहेगा?
कई लोगों की यह गलतफहमी होती है कि अगर पति ने पत्नी के नाम पर संपत्ति की रजिस्ट्री करा दी तो वह हमेशा के लिए पत्नी की खुद की संपत्ति हो जाती है। लेकिन अगर संपत्ति पत्नी की अपनी कमाई से नहीं खरीदी गई है, तो उस पर पति और परिवार के संयुक्त अधिकार माने जाएंगे। इस तरह की संपत्ति को बेचना या किसी को ट्रांसफर करना पत्नी के अकेले बस की बात नहीं होगी।
यदि स्थिति यह है कि पति जीवित है, तो पत्नी उस संपत्ति को न तो बिना पति की अनुमति के बेच सकती है और न ही किसी और को दे सकती है। पति की मृत्यु के बाद हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत पत्नी को पुत्रों के बराबर हिस्सा मिलता है, लेकिन वह अकेली स्वामिनी नहीं हो जाती। अगर पति ने वसीयत (Will) बनाई है तो उस वसीयत के अनुसार अधिकार बांटे जाएंगे। अगर वसीयत नहीं है, तो उत्तराधिकार कानून के मुताबिक संपत्ति बंटती है।
संपत्ति रजिस्टर कराने की प्रक्रिया और जरूरी बातें
अगर आप अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति रजिस्टर कराना चाहते हैं:
- संपत्ति खरीदने के लिए पैसे का स्रोत साफ रखें।
- अगर पैसा आपकी पत्नी के बैंक खाते से जा रहा है, तो साबित करें कि वह उनकी कमाई थी।
- संपत्ति के सारे दस्तावेज सुरक्षित और पारदर्शी रखें।
- खरीद-फरोख्त के समय, महिला के नाम की रजिस्ट्री पर स्टांप ड्यूटी छूट जरूर देखें।
- अगर आप मूल मालिक हैं लेकिन दिखावे के लिए पत्नी के नाम पर संपत्ति कर रहे हैं, तो “अगर वह बेनामी संपत्ति मानी गई” तो सरकार उसमें कानूनी कार्रवाई कर सकती है।
- विवाद की स्थिति में या परिवार में बंटवारे के समय इसका प्रभाव कोर्ट के फैसले के अनुसार लागू होगा।
नए फैसले से महिलाओं को क्या अधिकार और फायदा?
2025 के नए फैसले के अनुसार अब महिलाओं को अपनी संपत्ति पर और अधिक अधिकार मिलेंगे। अगर कोई महिला अपनी कमाई से संपत्ति खरीदती है तो वह उसे स्वतंत्र रूप से बेच, ट्रांसफर या किसी को दान कर सकती है। इसमें पति या परिवार की अनुमति जरूरी नहीं होगी। इससे महिलाओं का आत्मविश्वास और आर्थिक स्थिति दोनों मजबूत होंगी।
साथ ही, अगर कानूनी प्रावधानों को देखें, तो अब महिलाएं रजिस्ट्रेशन और मालिकाना हस्तांतरण में खुलकर और पारदर्शिता के साथ अपना अधिकार पा सकेंगी। हालांकि, समाज में अभी भी मानसिक बदलाव की जरूरत है कि संपत्ति महिला के नाम खरीदने का मतलब सिर्फ टैक्स बचत या सुरक्षा न हों, बल्कि महिला को भी उसमें बराबर की भागीदारी दी जाए।
निष्कर्ष
अगर आप पत्नी के नाम पर संपत्ति रजिस्टर करा रहे हैं तो कोर्ट के नए कानूनों और नियमों को जरूर समझें। आज के फैसले महिलाओं के लिए स्वामित्व को प्रोत्साहित कर रहे हैं, लेकिन पारिवारिक और कानूनी वास्तविकता को भी नजरअंदाज न करें। हर प्रक्रिया कानूनी और दस्तावेजी रूप से साफ-सुथरी हो, तभी भविष्य में किसी विवाद, बंटवारे या कानून की समस्या से बच सकते हैं।